कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव, सराभा से, जहाँ 24 मई 1896 को एक जाट सिख परिवार में करतार सिंह का जन्म हुआ।
ये कहानी 19 साल के एक गुमनाम देश भक्ति की अनदेखे सच की हकीकत में आज कहानी एक ऐसे गुमनाम देशभक्ति की जिनकी उम्र सिर्फ 19 साल और भगत सिंह भी उन्हें अपना गुरु मानते थे, स्वतंत्रता दिवस भारत के लिए खास दिन है इस दिन देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था हम कुछ स्वतंत्रता सेनानियों को तो जानते हैं पर कुछ ऐसे वीर भी हैं जो इतिहास के पन्नों में सिमट गए तो हम आज इस खास मौके पर ऐसे ही एक देशभक्त की सच्ची कहानी लेकर आए है स्वतंत्रता दिवस भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है 15 अगस्त 1947 को करीब 200 सालों के ब्रिटिश शासन को समाप्त करते हुए देश को आजादी मिली यह सभी भारतीयों के लिए बेहद गर्भ का दिन है क्योंकि हम उन बलिदानियों को याद करते है जो ब्रिटिश साम्राज्य को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया आज भी हम महात्मा गांधी, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय और कई अन्य प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में तो जानते हैं पर ऐसे कई गुमनाम नायक हैं जिन्होंने देश के लिए सर्वोत्तम बलिदान दिया ऐसे ही एक गुमनाम देशभक्त है करतार सिंह सराभा जिन्होंने 19 साल की छोटी सी उम्र में अपने प्राणों की आहुति दी, करतार सिंह भगत सिंह समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा बने और भगत सिंह तो उन्हें अपना गुरु आदर्श मानते थे लाहौर संयंत्र मामले में साराभाई और 27 अन्य क्रांतिकारी पर आरोप लगाया गया और उन पर मुकदमा चला कर उन्हें फांसी की सजा दे दी गई
बचपन में ही अपने पिता को खो देने के बाद, उनके दादा ने उनका पालन-पोषण किया। करतार की पढ़ाई गाँव के स्कूल में शुरू हुई और आगे चलकर मिशन हाई स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उनकी ज़िंदगी तब बदल गई जब 16 साल की उम्र में उन्हें कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में केमेस्ट्री की पढ़ाई करने भेजा गया।
सैन फ्रांसिस्को पहुँचने पर, करतार सिंह ने देखा कि भारतीयों के साथ बेहद अपमानजनक व्यवहार हो रहा था। उन्हें “गुलाम” कहा जाता और उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाता। इस अनुभव ने उनके दिल में एक आग जला दी। बर्कले में भारतीय छात्रों के नालंदा क्लब में शामिल होकर, उन्होंने ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस दौरान वह गदर आंदोलन के प्रमुख सदस्य बने, जिसका मुख्य उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से आज़ाद कराना था।
गदर पार्टी का गठन 21 अप्रैल, 1913 को ओरेगॉन में किया गया, और जल्द ही करतार सिंह गदर अखबार के पंजाबी संस्करण के प्रभारी बने। इस अखबार ने ब्रिटिश अत्याचारों को उजागर किया और प्रवासी भारतीयों में क्रांतिकारी विचारों को बढ़ावा दिया। अपनी पढ़ाई के दौरान ही, करतार सिंह भारत लौटे और अन्य युवा क्रांतिकारियों के साथ मिलकर पंजाब में क्रांति की योजना बनाई।
21 फरवरी, 1915 को करतार सिंह और उनके साथी छावनियों पर हमला करने की योजना बना चुके थे, लेकिन एक गद्दार ने अंग्रेजों को इसकी जानकारी दे दी। परिणामस्वरूप, कई गदरवादी गिरफ्तार हुए। इसके बावजूद, करतार सिंह ने हार नहीं मानी। हालांकि, 2 मार्च, 1915 को उन्हें भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए उकसाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया।
लाहौर षडयंत्र मामले में करतार सिंह और अन्य गदरवादियों पर मुकदमा चला। 19 वर्षीय करतार सिंह ने अपने लिए कोई बचाव नहीं किया। जज ने कहा कि करतार को अपने कार्यों पर गर्व था, और उसने कोई पछतावा नहीं दिखाया। उसे “सभी विद्रोहियों में सबसे खतरनाक” मानते हुए फांसी की सजा सुनाई गई।
16 नवंबर, 1915 को, करतार सिंह सराभा ने एक मुस्कान के साथ, आंखों में चमक और अपने द्वारा रचित देशभक्ति के गीत गाते हुए फांसी को गले लगा लिया। उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में जो साहस और बलिदान दिखाया, वह हमेशा के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक गुमनाम लेकिन प्रेरणादायक कहानी बनी रहेगी।
भगत सिंह ने उन्हें अपना गुरु माना, और उनके विचारों ने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक गहरा प्रभाव छोड़ा। आज, हम स्वतंत्रता दिवस के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, करतार सिंह सराभा जैसे गुमनाम नायकों के बलिदान को याद करते हैं, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर देश को आज़ादी दिलाई।